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लेखनी प्रतियोगिता -09-Oct-2023

दैनिक प्रतियोगिता

स्वैच्छिक कविता

*जीवन यात्रा*

यूं कह लो कि जिंदगी इक सराय है और हम मुसाफिर
या ये कह लो कि जिंदगी एक यात्रा है और हम यात्री

जगह जगह रूकते हैं 
स्थान बदलते हैं l
कभी जमते हैं तो कभी पिघलते हैं। 

जीवन एक यात्रा है पिछले जन्मों के कर्मों की 
जो यह जानते हुए जीता है साक्षी भाव में रहता है।

जो समझ नहीं पाता सत्य और असत्य में फर्क कर नहीं पाता वो 
हर पल दर्द से मरता है l

वो दर्द कहीं और से नहीं आता कोई और नहीं देता , दे ही नहीं सकता 

वो दर्द होता है खुद के विकारों का दर्द जो वह अपने विचारों से पैदा करता है खुद ही बुनता है खुद ही उलझता है l 

अपने बनाए मकड़जाल में, ये सोचकर छटपटाता है कि जो अच्छा है कष्ट झेल रहा है और जो बुरा है मजे कर रहा है।

जबतक इंसान केवल परमात्मा के लक्ष्य पर निगाहें स्थिर करके सफ़र तय नहीं करेगा वो कभी मुक्त नहीं होगा l 
पुन: पुन: जन्म लेगा , पुन: पुन: मृत्यु को प्राप्त होगा l 

मुक्ति का ये सफर मुसाफिर तेरा कभी खत्म न होगा l 
शिव चरणों में आकर ही तेरा गंतव्य तुझे प्राप्त होगा l
गंगा जल से ही तेरी यात्रा का अंत होगा 
और तू निराकार परमात्मा में व्याप्त होगा ll 💥


*अपर्णा"गौरी" शर्मा* 🕉️

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14 Comments

Punam verma

10-Oct-2023 07:58 AM

Very nice

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Thank you so much

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Abhinav ji

10-Oct-2023 07:07 AM

Nice 👍

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खूबसूरत भाव और संदेश देती हुई रचना

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बहुत धन्यवाद और आभार आपका

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